बीज के अंकुरण की जाँच और बीजोपचार अवश्य करें – डॉ. अजय कुमार पांडेय



रबी के फसलों के बीज को बोनी पूर्व छानें, बीनें तथा 100 बीज के अंकुरण की जाँच करें, यदि 75 बीज अंकुरित हो जायें तो प्रति एकड़ 32 किलो चना और अथवा 40 किलो गेहूँ की दर से बोनी करें. बोनी के पूर्व, चने के बीज का उपचार 3 ग्राम प्रति किलो बीज, ट्राईकोडर्मा विर्डी जैविक फफूँदनाशक अथवा 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से कार्बैंडाज़िम एवं मैंकोज़ैब की संयुक्त रासायनिक फफूँदनाशक दवा से उपचारित करें. साथ ही 5 ग्राम रायज़ोबियम तथा 5 ग्राम पी.एस.बी. कल्चर प्रति किलो बीज की दर से एवं प्रति किलो गेहूँ को 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज, कार्बॉक्सिन एवं थीरम की संयुक्त फफूँदनाशक दवा (100 ग्राम प्रति 40 किलो प्रति एकड़) से, साथ में 3 ग्राम पी.एस.बी. तथा 3 ग्राम ऐज़ैटोबक्टर कल्चर से उपचारित करें. इन उपायों से कम खर्च में ही रबी फसलों के उत्पादन में वृद्धि होगी. उपरोक्त समझाईश कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा की कृषि विस्तार वैज्ञानिक डॉ. किंजल्क सी. सिंह ने ग्राम पड़िया में ‘रबी फसलों की खेती में लागत में कमी’ विषय पर आयोजित गैर संस्थागत् प्रशिक्षण में 34 महिला कृषक़ो को दी.

डॉ. चन्द्रजीत सिंह, खाद्य वैज्ञानिक  ने बताया कि सीड ड्रिल की पेटी में परिवर्तन कर, तीन खाने बना कर,  चने की 7 कतार के उपरांत 2 कतार धनिया की अंतर्वर्तीय फसल लगायें. धनिये की खुशबू के कारण चने में इल्ली नहीं आयेगी, साथ में धनिया पत्ती और धने (धनिया का बीज़: लगभग 1.25 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन) का अतिरिक्त लाभ भी होगा और कीटनाशक के छिड़काव के खर्च की बचत भी होगी. फूल अवस्था में प्रति एकड़ खेत में 20 अंग्रेज़ी की ‘वाय’ आकार की अथवा ‘टी’ आकार की चने के पौधों से ऊँची खूँटियाँ लगा कर चिड़ियों को बैठने दें जो बची हुई इल्लियों को खेत से हटा देंगी. इन खूँटियों को फल अवस्था में अवश्य हटा दे. यदि बाद में दोबारा इल्लियाँ आने का खतरा हो तो प्रति एकड़ खेत में देशी, खुशबू वाली धनिया की चटनी को पानी में घोल कर, 200 लीटर धनिया की खुशबू से युक्त घोल का छिड़काव करें, इस तकनीक को किसान बहनें और भाई जवाहर किसान वैज्ञानिक एवं तकनीकी यू-ट्यूब चैनल में भी विडियो देख सकते है. प्रशिक्षणार्थियों की ओर से श्रीमति मनोज सिंह, श्रीमति सविता विश्वकर्मा तथा श्रीमति किरण पटेल ने प्रशिक्षण को बहुत उपयोगी तथा समसामायिक बताया.  उपरोक्त प्रशिक्षण केन्द्र के प्रमुख एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार पाँडेय के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ.      

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