महिलाओं की भागीदारी से बन सकता है लाभ का व्यवसाय कृषि

किसान यह नहीं जानते हैं कि वो जो बो रहे हैं वह बीज है अथवा दाना इसलिये उत्पादकता के प्रति अनिश्चितता बनी रहती है जिससे बचने के लिये वे आवश्यकता से अधिक बीज दर का उपयोग करते हैं और एक ओर लागत बढ़ाते हैं वहीं दूसरी ओर घनी बोनी करने के कारण प्राकृतिक संसाधन जैसे, धूप, हवा, जल, पोषक तत्व, फैलाव के लिये आवश्यक स्थान का उपयोग नहीं कर पाने के कारण उत्पादन में कमी आती है जिसके कारण आर्थिक नुकसान उठाते हैं.
 जब तक बीज देहरी के अन्दर रहता है तब तक महिलायें ही इसका रख रखाव करती हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा के वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रजीत सिंह  ने सोयाबीन में बुवाई पूर्व बीज प्रबन्धन विषय पर ग्राम जोरी में 20 महिलाओं और 9 पुरुषों  को विधि प्रदर्शन करते हुए तीन साल कोष जमा कर एक बार नौ तपे के पूर्व गहरी जुताई, उपलब्ध बीज का अंकुरण परीक्षण, प्रति एकड़ बीज दर का निर्धारण, फफूंद्ननाशक तथा रायज़ोबीयम एवं पी.एस.बी कल्चर से बीजोपचार करना तथा 12-14 इंच कतार कतार से बोनी के लिये अपने परिवार के मुखिया को बोनी के लिये निर्णय लेने को ज़ोर दे कर सहायता करने की समझाईश दी.
कार्यक्रम के सफल आयोजन में केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डो बी.एस द्विवेदी की भूमिका महत्वपूर्ण रही.
श्रीमती. माया सिंह, श्रीमति सुधा मिश्रा, ग्राम सचिव श्री. जय सिंह, श्री भुवन सिंह, श्री राज भुवन सिंह की उपस्थिति एवं सहयोग उल्लेख्नीय रहा.    google.co.in

आधुनिक कृषि तकनीक अपनायें और खेती की लागत में कमी लायें


क़ृषि आदान का क्रय करने के पूर्व कृषक भाईयों को सजग रहना बहुत आवश्यक है. आदान क्रय करने के पूर्व नवीनतनम तकनीकी जानकारी के लिये कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा पधार कर सम्बन्धित वैज्ञानिक से निःशुल्क सलाह लें तत्पश्चात कृषि आदान के विक्रय की दुकान जा कर वैज्ञानिकों कि अनुशंसा के अनुसार ही कृषि अदान क्रय करें, अदान हमेशा नगद में क्रय करें, आदान क्रय करते समय एक्स्पायरी तिथि की जाँच अवश्य करें एवं खरीदे गये आदान का कैश मैमो अवश्य लें. उपरोक्त जानकारी अपने उद्बोधन में, विषय विषेशज्ञ डॉ. किंजल्क सी. सिंह ने ग्राम जोरी में, कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा की कार्यक्रम समन्वयक, डॉ. निर्मला सिंह के दिशा निर्देशन में, ‘कृषि आदान क्रय में सावधानिय़ाँ’ विषय पर दिये जा रहे प्रशिक्षण में दी. आपने आगे बताया के आदान का क्रय समय से पूर्व करें ताकि आदान की उप्लब्धता सुनिश्चित हो सके.

केन्द्र के ही वैज्ञानिक, डॉ. चन्द्रजीत सिंह ने कहा की किसान भाई किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम का लाभ लें और समय पर बैंक का पैसा लौटायें और डिफॉल्टर बनने से बचें ताकि आने वाले वर्षों में भी इस स्कीम का लाभ आप लेते रहें और समय से पूर्व कृषि आदान क्रय कर सकें.

केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. बी. एस. द्विवेदी ने जहाँ एक ओर ग्राम के कृषकों के खेत से मृदा का जाँच हेतु मृदा के नमूने एकत्रित किये वहीं जवाहर कल्चर का खरीफ फसलों में उपयोग की समझाईश दी. आपने ज़ोर देते हुये कहा कि जवाहर कल्चर का क्रय किसान भाई, कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा अथवा मृदा विभाग, कृषि महाविद्यालय, रीवा से ही करें.

केन्द्र के द्वारा एंट्री पोईंट एक्टिविटी हेतु, ग्राम भ्रमण के दौरान वैज्ञानिकों ने गोबर और कचरे से भरे, दो साल पुराने गड्ढे को खोदते हुये किसान को मौके पर ही समझाया कि घूरे में दो साल बाद भी गोबर गर्म निकल रहा है और इस प्रकार का गोबर इतने दिनों बाद भी गोबर ही है न की खाद. ऐसा गोबर दीमक और चारे का बहुत ही बड़ा स्त्रोत है और चारे की वजह से खेत पर हानीकारक कीड़ों की संख्या में भी भारी वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप दवाईयों के खर्च का अतिरिक्त बोझ किसानों के ऊपर आ पड़ता है और लाभांश में कमी आ जाती है.

अतः कम लागत के कच्चे भू-नाडेप, टटिया नाडेप अथवा पक्के नाडेप के ज़रीये ही गोबर की खाद बनायें और खेती की लगत में कमी लायें.

किसानों को समझाया गया की फिलहाल जो गोबर घूरों से खोदी जा रही है उसे खेत में डालने के पूर्व ज़मीन के ऊपर पाँच से दस दिन पानी डाल कर ठंडा कर लेने के बाद ही खेत में डालें और आगे से अनुशंसित तरीके से ही खाद बनायें.


प्रशिक्षण को सफल बनाने में ग्राम सचिव श्री जय सिंह जी और गाँव के ही प्रगतिशील कृषक श्री कुशवाहा जी तथा श्री रवि नन्दन सिंह चन्देल जी का सहयोग प्रशंसनीय रहा.   
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