कृषि महाविद्यालय रीवा में राज्यस्तरीय कार्यशाला संपन्न

माननीय संचालक विस्तार सेवायें कार्यशाला के अवसर
    जवाहरलाल नेहरू  कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के माननीय कुलपति प्रो. गौतम कल्लू के दिशा निर्देशन में कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि महाविद्यालय, रीवा के किसानों के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत है । कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा प्रत्येक दो वर्ष में जिले के दो अंगीकृत ग्रामों को आदर्श ग्राम की तरह विकसित करता है इन अंगीकृत ग्रामों में कृषक प्रक्षेत्र परीक्षण तथा अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों द्वारा तकनीकी का स्थानांतरण किया जाता है । इसी तारतम्य में आई.सी.ए.आर. जोन-7 के जोनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ.यू.एस.गौतम की अध्यक्षता में कृषि महाविद्यालय रीवा में दिनांक 20-22 अप्रैल, 2010 को तीन दिवसीय राज्यस्तरीय वर्कशाप दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अग्रिम पंक्ति प्रदर्षन विषय पर संपन्न हुआ जिसमें म.प्र. के 47 कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्यक्रम समन्वयक एवं विषय वस्तु विशेषज्ञों ने कृषकों के खेतों पर डाले गये प्रयोगों के परिणामों को प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीपप्रज्वलन से शुरु हुआ, सर्वप्रथम ज.ने.कृषि विश्वविद्यालय के संचालक विस्तार सेवायें, डॉ. के.के. सक्सेना तथा राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के संचालक विस्तार सेवायें, डॉ. एस.एस. तोमर द्वारा अपने अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया । कृषि महाविद्यालय रीवा के अधिष्ठाता डॉ. एस.के.राव ने बताया कि जिले में उपलब्ध संसाधनों एवं कृषकों की आवश्कताओं के अनुसार तकनीकी गावों में पहुँचाई जानी चाहिए । जोनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर, आई.सी.ए.आर. के बरिष्ट वैज्ञानिक, डॉ.एस.आर.के.सिंह द्वारा आवंटित बजट का मदवार उपयोग करने का सुझाव दिया गया ।
            कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा की कार्यक्रम समन्वयक डॉ. श्रीमती निर्मला सिंह ने अंगीकृत ग्रामों में डाले गये दलहनी एवं तिलहनी फसलों के परिणामों को सदन के समक्ष प्रस्तुत किया ।
            डॉ.टी.आर.शर्मा तकनीकी अधिकारी संचालक विस्तार सेवायें ज.ने.कृ.वि.वि., जबलपुर द्वारा सुझाया गया कि विश्वविद्यालय द्वारा कार्ययोजना निश्चित हो जाने के बाद कोई परिवर्तन करने के लिए संचालक विस्तार सेवायें से अनुमति लेना आवश्यक है ।
            डॉ. वाय.एम.कूल, संचालक विस्तार सेवायें, राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने बताया कि जल संरक्षण के लिए पौधरोपण सबसे उपयुक्त संसाधन है । कार्यक्रम के समापन अवसर पर ज.ने.कृ.वि.वि. जबलपुर के सेवा निवृत्त संचालक विस्तार सेवायें डॉ. आर. ए. खान ने ग्रामीण महिलाओं एवं नवयुवकों के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा आयोजित प्रशिक्षणों को उपयोगी बताया । इस अवसर पर शक्तिमान रोटावेटर्स के श्री आशीष पटेल तथा ईफको के जिला प्रबंधक श्री भूपेष राठौर का योगदान सराहनीय रहा ।
            कृषि महाविद्यालय रीवा के प्रो. डॉ.एस.एन.श्रीवास्तव, डॉ.आर.ए.साठवाने, डॉ.यू.एस.बोस, तथा डॉ.एस.के.त्रिपाठी ने कालेज की सुविधाओं को उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया । इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय रीवा के पूर्व अधिष्ठाता, डॉ. आर.पी.सिंह उपस्थित रहें । उक्त अवसर पर कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा के सभी वैज्ञानिकों डॉ.आर.पी.जोशी डॉ. आर.के.तिवारी, डॉ.सी.जे. सिंह, डॉ.श्रीमती किंजल्क सिंह, डॉ.रूपेश् जैन, डॉ. राजेश सिंह, डॉ.बी.एस.द्विवेदी, श्री एम.के.मिश्रा तथा अन्य स्टाफ श्री आर.एस.पटेल, उमेश वर्मा एवं ब्रिजेश सेन का कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
कार्यशाला में अनुशंषा की गयी कि स्थानीय मौसम एवं जलवायु की अनुकूलताओं के अनुसार ही किस्मों का चयन अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन हेतु किया जाना चाहिए । प्रदेश के समस्त कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा लिए गये दलहन एवं तिलहन अग्रिम पंक्ति प्रदर्श्नों के परिणाम प्रस्तुत करने के साथ साथ अग्रिम कार्ययोजना पर बिंदुवार विचार विमर्श् किया गया । कार्यशाला के तीसरे दिन समीक्षा बैठक की गई ।
कार्यक्रम के अंत में कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा द्वारा संगठित, प्रशिक्षित, प्रेरित समूह- साथ रुचि समूह पड़रा के द्वारा तैयार आँवले से तैयार मुरब्बा, सुपारी, कैंडी, कैंडी बॉल इत्यादी का सेवन कर लुत्फ उठाया वहीं जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वफविद्यालय के संचालक विस्तार सेवायें, डॉ. के.के. सक्सेना तथा संचालक विस्तार सेवायें, राजमाता विजय राजे सिन्धिया कृषि विश्वविद्यालय,  डॉ. वाय.एम कूल ने समूह से आँवले का मुरब्बा क्रय कर समूह को प्रोत्साहन प्रदान किया.   

महिलाओं के परिश्रम में कमी हेतु कुल्पे का प्रयोग प्रारम्भ


पिछले वर्ष से, जब सोयाबीन में नींदा नियंत्रण में, महिलाओं के परिश्रम में कमी हेतु कुल्पे का प्रयोग प्रारम्भ किया गया तो मामूली सफलता ही हाथ लगी. कुछ महिला कृषकों एवं कृषकों के द्वारा रीवा जिले की मिट्टी चिपचिपी एवं कड़ी होने के कारण इस यन्त्र को सफल नही बताया गया. तब डॉ किंजल्क सी सिंह ने कुल्पे को एक साल के लिए किसानों के पास यह सोच कर छोड़ दिया की इस बारे में एक साल बाद महिला कृषकों तथा कृषकों की प्रतिक्रिया प्राप्त की जायेगी।
एक वर्ष बाद ग्राम अमरा के सम्पर्क कृषक श्री सुग्रीव जी ने बताया की यह यन्त्र सब्जी की बगिया को जोतने, बखरने एवं नींदा निकालने के लिए अत्यंत उपयोगी है. इसी तरह ग्राम गुराहर के श्री गोपेन्द्र त्रिपाठी जी ने आलू पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य डॉ चंद्रजीत सिंह के सामने कर दिखाया जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गयी. आपने बताया की हाथ से मिट्टी चढ़ाने में बहुत समय लगता था पर इस यन्त्र के उपयोग से समय की बहुत बचत होती है.
इन फीड बाक के आधार पर इस वर्ष, इस कार्यक्रम को कृषि विज्ञान केन्द्र के नए अंगीकृत ग्राम लक्ष्मनपुर में प्रशिक्षण के द्वारा लागू लिया गया. वैज्ञानिक डॉ किंजल्क सी सिंह ने बतया की प्रशिक्षण पूरा होते होते ही लगभग सौ कुल्पों की मांग कृषकों की और से प्रस्तुत की गयी है जिसकी आपूर्ति के लिए, कृषि विभाग तथा एम् पी एग्रो से सम्पर्क बनाये हुआ है.
विदित हो कि दो वर्ष पूर्व रीवा जिले में कुल्पे का उपयोग न के बराबर था.
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