चने में समन्वित कीट नियंत्रण विषय पर प्रशिक्षण


ग्राम कोठी में आयोजित प्रशिक्षण 
कृषि महाविद्यालय रीवा (म.प्र.) के माननीय अधिष्ठाता डॉ. एस. के. राव के मार्गदर्शन  एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के कार्यक्रम समन्वयक डॉ. ए.के. पाँडेय के निर्देशन में ग्राम कोठी में रबी दलहन में एकीकृत कीट नियंत्रण के उपाय विषय पर 42 ग्रामीण महिलाओं एवं कृषक भाईयों को प्रशिक्षण दिया गया ।
        कृषक गण के खेतों के अवलोकन कर वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि दलहन फसल विशेषकर चने की फसल पर इल्लीयों का आक्रमण प्रारम्भ हो चुका है जिसकी रोकथाम तुरंत करना आवश्यक है. इसी बात की जानकारी कृषकों को  प्रशिक्षण के माध्यम से दी गयी.
डॉ. किंजल्क सी सिंह ने बाताया कि चने की कतार के बीच गमछा बिछा कर चने के पौधे को हिलायें यदि गमछे पर 4-5 इल्लीयाँ गिरें तो समझें कि इल्ली का प्रकोप को रोकना आवशयक हो गया है. चने के खेत में पक्षीयों का आना भी इल्ली के प्रकोप की ओर इंगित करता है.
ऐसी परिस्थिति में अथवा फूल अवस्था आने पर खेत में अंग्रेज़ी के T’  (टी अक्षर) अथवा Y’ (वाय अक्षर) के आकार की  चने की फसल से ऊँची 20 खूँटीयाँ प्रति एकड़ लगायें जिसपर पक्षी आ कर बैठें और इल्लीयों को चुनकर हानिकारक स्तर के नीचे ला दें.  किंतु फल आने पर इन खूँटीयों को निकाल दें जिससे पक्षी फलों को नुकसान नहीं पहुँचायें. इसके अतिरिक्त मेड़ और खेत से चौड़ी पत्तीयों की खरपतवार विषेशकर खेत से लमेरा राई के पौधे निकाल कर नष्ट करें. चौड़ी पत्तीयों पर इल्लीयाँ अंडें देती हैं जिससे इल्लीयों का संक्रमण कई  गुना बढ़ जाता है.
डॉ. चन्द्रजीत सिहं ने बताया कि नीम की पत्तीयों को उबाल कर और निचोड़कर काढ़ा बनाकर तथा प्रति टंकी दो चम्मच कपड़े अथवा बर्तन धोने का पाऊडर मिला कर  हर पाँच दिन में फसल पर छिड़काव करें जिससे इल्लीयों के आक्रमण  कमी आयेगी. रसायनिक उपायों पर निर्भरता कम होने से खेती की लागत में तो कमी आयेगी ही साथ ही साथ फसल तथा मृदा के स्वास्थ पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा. फेरोमॉन फन्दा और प्रकाश प्रपंच लगाने से भी खेत में आने वाले कीटों की जानकारी मिलेगी और मित्र कीट रासायनों के प्रकोप से बचेंगे .
इन सभी उपायों के बावजूद भी यदि कीट नष्ट नहीं  होते तो 35 मिली ट्रायज़ोफॉस प्रति टंकी मिलाकर डालें . प्रति एकड़ 18-20 टंकी दवाई का छिड़काव करें. 
        प्रशिक्षणार्थियों की ओर से श्रीमति साधना मालवीय ने प्रशिक्षण को समयानुकूल तथा कृषकों के लिये सार्थक एवं उपयोगी बताया एवं कृषि विज्ञान केन्द्र को तक्नीकी जानकारी प्रदान करने के लिये धन्यवाद दिया। प्रशिक्षण में औषधीय वैज्ञानिक डॉ. निर्मला सिंह तथा वैज्ञानिक पौध प्रजनन डॉ. आर.पी जोशी  सहयोग प्रशंसनीय रहा । 

महिलाओं की भागीदारी से बन सकता है लाभ का व्यवसाय कृषि

किसान यह नहीं जानते हैं कि वो जो बो रहे हैं वह बीज है अथवा दाना इसलिये उत्पादकता के प्रति अनिश्चितता बनी रहती है जिससे बचने के लिये वे आवश्यकता से अधिक बीज दर का उपयोग करते हैं और एक ओर लागत बढ़ाते हैं वहीं दूसरी ओर घनी बोनी करने के कारण प्राकृतिक संसाधन जैसे, धूप, हवा, जल, पोषक तत्व, फैलाव के लिये आवश्यक स्थान का उपयोग नहीं कर पाने के कारण उत्पादन में कमी आती है जिसके कारण आर्थिक नुकसान उठाते हैं.
 जब तक बीज देहरी के अन्दर रहता है तब तक महिलायें ही इसका रख रखाव करती हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा के वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रजीत सिंह  ने सोयाबीन में बुवाई पूर्व बीज प्रबन्धन विषय पर ग्राम जोरी में 20 महिलाओं और 9 पुरुषों  को विधि प्रदर्शन करते हुए तीन साल कोष जमा कर एक बार नौ तपे के पूर्व गहरी जुताई, उपलब्ध बीज का अंकुरण परीक्षण, प्रति एकड़ बीज दर का निर्धारण, फफूंद्ननाशक तथा रायज़ोबीयम एवं पी.एस.बी कल्चर से बीजोपचार करना तथा 12-14 इंच कतार कतार से बोनी के लिये अपने परिवार के मुखिया को बोनी के लिये निर्णय लेने को ज़ोर दे कर सहायता करने की समझाईश दी.
कार्यक्रम के सफल आयोजन में केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डो बी.एस द्विवेदी की भूमिका महत्वपूर्ण रही.
श्रीमती. माया सिंह, श्रीमति सुधा मिश्रा, ग्राम सचिव श्री. जय सिंह, श्री भुवन सिंह, श्री राज भुवन सिंह की उपस्थिति एवं सहयोग उल्लेख्नीय रहा.    google.co.in

आधुनिक कृषि तकनीक अपनायें और खेती की लागत में कमी लायें


क़ृषि आदान का क्रय करने के पूर्व कृषक भाईयों को सजग रहना बहुत आवश्यक है. आदान क्रय करने के पूर्व नवीनतनम तकनीकी जानकारी के लिये कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा पधार कर सम्बन्धित वैज्ञानिक से निःशुल्क सलाह लें तत्पश्चात कृषि आदान के विक्रय की दुकान जा कर वैज्ञानिकों कि अनुशंसा के अनुसार ही कृषि अदान क्रय करें, अदान हमेशा नगद में क्रय करें, आदान क्रय करते समय एक्स्पायरी तिथि की जाँच अवश्य करें एवं खरीदे गये आदान का कैश मैमो अवश्य लें. उपरोक्त जानकारी अपने उद्बोधन में, विषय विषेशज्ञ डॉ. किंजल्क सी. सिंह ने ग्राम जोरी में, कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा की कार्यक्रम समन्वयक, डॉ. निर्मला सिंह के दिशा निर्देशन में, ‘कृषि आदान क्रय में सावधानिय़ाँ’ विषय पर दिये जा रहे प्रशिक्षण में दी. आपने आगे बताया के आदान का क्रय समय से पूर्व करें ताकि आदान की उप्लब्धता सुनिश्चित हो सके.

केन्द्र के ही वैज्ञानिक, डॉ. चन्द्रजीत सिंह ने कहा की किसान भाई किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम का लाभ लें और समय पर बैंक का पैसा लौटायें और डिफॉल्टर बनने से बचें ताकि आने वाले वर्षों में भी इस स्कीम का लाभ आप लेते रहें और समय से पूर्व कृषि आदान क्रय कर सकें.

केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. बी. एस. द्विवेदी ने जहाँ एक ओर ग्राम के कृषकों के खेत से मृदा का जाँच हेतु मृदा के नमूने एकत्रित किये वहीं जवाहर कल्चर का खरीफ फसलों में उपयोग की समझाईश दी. आपने ज़ोर देते हुये कहा कि जवाहर कल्चर का क्रय किसान भाई, कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा अथवा मृदा विभाग, कृषि महाविद्यालय, रीवा से ही करें.

केन्द्र के द्वारा एंट्री पोईंट एक्टिविटी हेतु, ग्राम भ्रमण के दौरान वैज्ञानिकों ने गोबर और कचरे से भरे, दो साल पुराने गड्ढे को खोदते हुये किसान को मौके पर ही समझाया कि घूरे में दो साल बाद भी गोबर गर्म निकल रहा है और इस प्रकार का गोबर इतने दिनों बाद भी गोबर ही है न की खाद. ऐसा गोबर दीमक और चारे का बहुत ही बड़ा स्त्रोत है और चारे की वजह से खेत पर हानीकारक कीड़ों की संख्या में भी भारी वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप दवाईयों के खर्च का अतिरिक्त बोझ किसानों के ऊपर आ पड़ता है और लाभांश में कमी आ जाती है.

अतः कम लागत के कच्चे भू-नाडेप, टटिया नाडेप अथवा पक्के नाडेप के ज़रीये ही गोबर की खाद बनायें और खेती की लगत में कमी लायें.

किसानों को समझाया गया की फिलहाल जो गोबर घूरों से खोदी जा रही है उसे खेत में डालने के पूर्व ज़मीन के ऊपर पाँच से दस दिन पानी डाल कर ठंडा कर लेने के बाद ही खेत में डालें और आगे से अनुशंसित तरीके से ही खाद बनायें.


प्रशिक्षण को सफल बनाने में ग्राम सचिव श्री जय सिंह जी और गाँव के ही प्रगतिशील कृषक श्री कुशवाहा जी तथा श्री रवि नन्दन सिंह चन्देल जी का सहयोग प्रशंसनीय रहा.   

कृषि महाविद्यालय रीवा में राज्यस्तरीय कार्यशाला संपन्न

माननीय संचालक विस्तार सेवायें कार्यशाला के अवसर
    जवाहरलाल नेहरू  कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के माननीय कुलपति प्रो. गौतम कल्लू के दिशा निर्देशन में कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि महाविद्यालय, रीवा के किसानों के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत है । कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा प्रत्येक दो वर्ष में जिले के दो अंगीकृत ग्रामों को आदर्श ग्राम की तरह विकसित करता है इन अंगीकृत ग्रामों में कृषक प्रक्षेत्र परीक्षण तथा अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों द्वारा तकनीकी का स्थानांतरण किया जाता है । इसी तारतम्य में आई.सी.ए.आर. जोन-7 के जोनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ.यू.एस.गौतम की अध्यक्षता में कृषि महाविद्यालय रीवा में दिनांक 20-22 अप्रैल, 2010 को तीन दिवसीय राज्यस्तरीय वर्कशाप दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अग्रिम पंक्ति प्रदर्षन विषय पर संपन्न हुआ जिसमें म.प्र. के 47 कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्यक्रम समन्वयक एवं विषय वस्तु विशेषज्ञों ने कृषकों के खेतों पर डाले गये प्रयोगों के परिणामों को प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीपप्रज्वलन से शुरु हुआ, सर्वप्रथम ज.ने.कृषि विश्वविद्यालय के संचालक विस्तार सेवायें, डॉ. के.के. सक्सेना तथा राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के संचालक विस्तार सेवायें, डॉ. एस.एस. तोमर द्वारा अपने अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया । कृषि महाविद्यालय रीवा के अधिष्ठाता डॉ. एस.के.राव ने बताया कि जिले में उपलब्ध संसाधनों एवं कृषकों की आवश्कताओं के अनुसार तकनीकी गावों में पहुँचाई जानी चाहिए । जोनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर, आई.सी.ए.आर. के बरिष्ट वैज्ञानिक, डॉ.एस.आर.के.सिंह द्वारा आवंटित बजट का मदवार उपयोग करने का सुझाव दिया गया ।
            कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा की कार्यक्रम समन्वयक डॉ. श्रीमती निर्मला सिंह ने अंगीकृत ग्रामों में डाले गये दलहनी एवं तिलहनी फसलों के परिणामों को सदन के समक्ष प्रस्तुत किया ।
            डॉ.टी.आर.शर्मा तकनीकी अधिकारी संचालक विस्तार सेवायें ज.ने.कृ.वि.वि., जबलपुर द्वारा सुझाया गया कि विश्वविद्यालय द्वारा कार्ययोजना निश्चित हो जाने के बाद कोई परिवर्तन करने के लिए संचालक विस्तार सेवायें से अनुमति लेना आवश्यक है ।
            डॉ. वाय.एम.कूल, संचालक विस्तार सेवायें, राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर ने बताया कि जल संरक्षण के लिए पौधरोपण सबसे उपयुक्त संसाधन है । कार्यक्रम के समापन अवसर पर ज.ने.कृ.वि.वि. जबलपुर के सेवा निवृत्त संचालक विस्तार सेवायें डॉ. आर. ए. खान ने ग्रामीण महिलाओं एवं नवयुवकों के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा आयोजित प्रशिक्षणों को उपयोगी बताया । इस अवसर पर शक्तिमान रोटावेटर्स के श्री आशीष पटेल तथा ईफको के जिला प्रबंधक श्री भूपेष राठौर का योगदान सराहनीय रहा ।
            कृषि महाविद्यालय रीवा के प्रो. डॉ.एस.एन.श्रीवास्तव, डॉ.आर.ए.साठवाने, डॉ.यू.एस.बोस, तथा डॉ.एस.के.त्रिपाठी ने कालेज की सुविधाओं को उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया । इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय रीवा के पूर्व अधिष्ठाता, डॉ. आर.पी.सिंह उपस्थित रहें । उक्त अवसर पर कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा के सभी वैज्ञानिकों डॉ.आर.पी.जोशी डॉ. आर.के.तिवारी, डॉ.सी.जे. सिंह, डॉ.श्रीमती किंजल्क सिंह, डॉ.रूपेश् जैन, डॉ. राजेश सिंह, डॉ.बी.एस.द्विवेदी, श्री एम.के.मिश्रा तथा अन्य स्टाफ श्री आर.एस.पटेल, उमेश वर्मा एवं ब्रिजेश सेन का कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा ।
कार्यशाला में अनुशंषा की गयी कि स्थानीय मौसम एवं जलवायु की अनुकूलताओं के अनुसार ही किस्मों का चयन अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन हेतु किया जाना चाहिए । प्रदेश के समस्त कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा लिए गये दलहन एवं तिलहन अग्रिम पंक्ति प्रदर्श्नों के परिणाम प्रस्तुत करने के साथ साथ अग्रिम कार्ययोजना पर बिंदुवार विचार विमर्श् किया गया । कार्यशाला के तीसरे दिन समीक्षा बैठक की गई ।
कार्यक्रम के अंत में कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा द्वारा संगठित, प्रशिक्षित, प्रेरित समूह- साथ रुचि समूह पड़रा के द्वारा तैयार आँवले से तैयार मुरब्बा, सुपारी, कैंडी, कैंडी बॉल इत्यादी का सेवन कर लुत्फ उठाया वहीं जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वफविद्यालय के संचालक विस्तार सेवायें, डॉ. के.के. सक्सेना तथा संचालक विस्तार सेवायें, राजमाता विजय राजे सिन्धिया कृषि विश्वविद्यालय,  डॉ. वाय.एम कूल ने समूह से आँवले का मुरब्बा क्रय कर समूह को प्रोत्साहन प्रदान किया.   

महिलाओं के परिश्रम में कमी हेतु कुल्पे का प्रयोग प्रारम्भ


पिछले वर्ष से, जब सोयाबीन में नींदा नियंत्रण में, महिलाओं के परिश्रम में कमी हेतु कुल्पे का प्रयोग प्रारम्भ किया गया तो मामूली सफलता ही हाथ लगी. कुछ महिला कृषकों एवं कृषकों के द्वारा रीवा जिले की मिट्टी चिपचिपी एवं कड़ी होने के कारण इस यन्त्र को सफल नही बताया गया. तब डॉ किंजल्क सी सिंह ने कुल्पे को एक साल के लिए किसानों के पास यह सोच कर छोड़ दिया की इस बारे में एक साल बाद महिला कृषकों तथा कृषकों की प्रतिक्रिया प्राप्त की जायेगी।
एक वर्ष बाद ग्राम अमरा के सम्पर्क कृषक श्री सुग्रीव जी ने बताया की यह यन्त्र सब्जी की बगिया को जोतने, बखरने एवं नींदा निकालने के लिए अत्यंत उपयोगी है. इसी तरह ग्राम गुराहर के श्री गोपेन्द्र त्रिपाठी जी ने आलू पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य डॉ चंद्रजीत सिंह के सामने कर दिखाया जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गयी. आपने बताया की हाथ से मिट्टी चढ़ाने में बहुत समय लगता था पर इस यन्त्र के उपयोग से समय की बहुत बचत होती है.
इन फीड बाक के आधार पर इस वर्ष, इस कार्यक्रम को कृषि विज्ञान केन्द्र के नए अंगीकृत ग्राम लक्ष्मनपुर में प्रशिक्षण के द्वारा लागू लिया गया. वैज्ञानिक डॉ किंजल्क सी सिंह ने बतया की प्रशिक्षण पूरा होते होते ही लगभग सौ कुल्पों की मांग कृषकों की और से प्रस्तुत की गयी है जिसकी आपूर्ति के लिए, कृषि विभाग तथा एम् पी एग्रो से सम्पर्क बनाये हुआ है.
विदित हो कि दो वर्ष पूर्व रीवा जिले में कुल्पे का उपयोग न के बराबर था.
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