कृषि
विज्ञान केन्द्र के कार्यक्रम सम्न्वयक डॉ. ए. के. पाँडेय ने बाताया कि केन्द्र
द्वारा अंगीकृत किसानों के द्वारा सोयाबीन की खेती 140 किलो एस.एस.पी (राखड़), 18 किलो म्युरेट ऑफ
पोटाश ( लाल खाद) और 13 किलो युरिया के सम्मिश्रण के उपयोग द्वारा किया जा रहा है.
आपने आगे बताया कि तिलहन फसलों में तेल की मात्रा बढ़ाने हेतु राखड़ में उपलब्ध
सल्फर नामक तत्व आवश्यक होता है जिससे सोयबीन के दाने
बड़े तथा चमकदार बनते हैं और उपज का बाज़ार भाव बेहतर मिलता है.
कृषि
में महिलाओं के योगदान विषय पर कार्य कर रहे वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रजीत सिंह ने
बाताया कि ग्राम लक्ष्मणपुर की महिला कृषक श्रीमति कलावती पटेल, पत्नी श्री रामसुमिरन
पटेल ने नौतपे के पूर्व खेत की गहरी जुताई करवाई तथा बीज के अंकुरण की जाँच के
उपरांत बीज का उपचार 150 ग्राम ट्राईकोडर्मा
फफूँदनाशक तथा 250 ग्राम राईज़ोबियम और 600 ग्राम पी.एस.बी कल्चर प्रति एकड़ बीज से
उपचारित करने के बाद 30किलो बीज प्रति एकड़ की बोनी कतार छोड़ पद्धति से की जिसमें
कतार से कतार की दूरी 18 इंच है. इस दूरी के कारण सूर्य की किरणें ज़मीन तक पहुँचती हैं और इस कारण कीटों का आक्रमण प्रभावशाली ढंग से कम
होता है तथा पूरे पौधे पर सूर्य की रौशनी पड़ने के कारण समूचे पौधे में समान रूप से
फलन होता है. कतार से कातार की बढ़ी हुई दूरी के कारण पौधे की शाखाओं में फैलाव भी
अधिक होता है जिस कारण से फलन और अधिक होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है.
केन्द्र
के शस्य वैज्ञानिक डॉ. रघुराज किशोर तिवारी ने आगे बताया कि कुठुलिया में श्री
प्रियेश कनौडिया ने भी इस प्रयोग को अपने खेत में दोहराया है साथ ही साथ आपने
प्रत्येक दस कतार के उपरांत ढाई फुट का रास्ता कीट तथा खरपतवार के नियंत्रण हेतु दवाई छिड़कने
के लिये छोड़ी है.
कृषि
विस्तार की वैज्ञानिक डॉ, किंजल्क सी, सिंह ने बताया कि गुड़हर के कृषक श्री
गोपेन्द्र त्रिपाठी जी ने सोयाबीन की अत्याधुनिक तकनीक अपनाते हुये मेड़- नाली विधि
से सोयाबीन की बोनी की है. जिससे कतार से कतार की दूरी 12 इंच होती है और पौधे का
फैलाव अच्छा होने के कारण फसलोत्पादन में वृद्धि होती है तथा सोयाबीन की बोनी, पानी
से दूर मेड़ पर होती है, अधिक वर्षा होने कि स्थिति में
नालियों से पानी खेत से बाहर हो जाता है और फसल को नुकसान नहीं होता है. चूँकि मेड़
भुरभुरी होती हैं इस कारण पौधे की जड़ का फैलाव अच्छा होता है और पौधे का विकास
बेहतर होता है. जब पानी की कमी होती है तो यही नालियाँ सिंचाई के काम आती हैं.
बाकी कृषि कार्यमाला कतार-छोड़ पद्धति की ही तरह ही अपनाई गई है.
कृषक
भाई बहनों से केन्द्र ने अपील है कि वे इन खेतों का भ्रमण कर नई विधियों का अनुभव
लें और अपने खेतों पर भी इन्हें अपना कर अधिकाधिक लाभ अर्जित करें.
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