महिलाओं के परिश्रम में कमी हेतु कुल्पे का प्रयोग प्रारम्भ


पिछले वर्ष से, जब सोयाबीन में नींदा नियंत्रण में, महिलाओं के परिश्रम में कमी हेतु कुल्पे का प्रयोग प्रारम्भ किया गया तो मामूली सफलता ही हाथ लगी. कुछ महिला कृषकों एवं कृषकों के द्वारा रीवा जिले की मिट्टी चिपचिपी एवं कड़ी होने के कारण इस यन्त्र को सफल नही बताया गया. तब डॉ किंजल्क सी सिंह ने कुल्पे को एक साल के लिए किसानों के पास यह सोच कर छोड़ दिया की इस बारे में एक साल बाद महिला कृषकों तथा कृषकों की प्रतिक्रिया प्राप्त की जायेगी।
एक वर्ष बाद ग्राम अमरा के सम्पर्क कृषक श्री सुग्रीव जी ने बताया की यह यन्त्र सब्जी की बगिया को जोतने, बखरने एवं नींदा निकालने के लिए अत्यंत उपयोगी है. इसी तरह ग्राम गुराहर के श्री गोपेन्द्र त्रिपाठी जी ने आलू पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य डॉ चंद्रजीत सिंह के सामने कर दिखाया जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गयी. आपने बताया की हाथ से मिट्टी चढ़ाने में बहुत समय लगता था पर इस यन्त्र के उपयोग से समय की बहुत बचत होती है.
इन फीड बाक के आधार पर इस वर्ष, इस कार्यक्रम को कृषि विज्ञान केन्द्र के नए अंगीकृत ग्राम लक्ष्मनपुर में प्रशिक्षण के द्वारा लागू लिया गया. वैज्ञानिक डॉ किंजल्क सी सिंह ने बतया की प्रशिक्षण पूरा होते होते ही लगभग सौ कुल्पों की मांग कृषकों की और से प्रस्तुत की गयी है जिसकी आपूर्ति के लिए, कृषि विभाग तथा एम् पी एग्रो से सम्पर्क बनाये हुआ है.
विदित हो कि दो वर्ष पूर्व रीवा जिले में कुल्पे का उपयोग न के बराबर था.

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