ग्राम कोठी में आयोजित प्रशिक्षण |
कृषक गण के खेतों के अवलोकन कर वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि दलहन फसल विशेषकर चने की फसल पर इल्लीयों का आक्रमण प्रारम्भ हो चुका है जिसकी रोकथाम तुरंत करना आवश्यक है. इसी बात की जानकारी कृषकों को प्रशिक्षण के माध्यम से दी गयी.
डॉ. किंजल्क सी सिंह ने बाताया कि चने की कतार के बीच गमछा बिछा कर चने के पौधे को हिलायें यदि गमछे पर 4-5 इल्लीयाँ गिरें तो समझें कि इल्ली का प्रकोप को रोकना आवशयक हो गया है. चने के खेत में पक्षीयों का आना भी इल्ली के प्रकोप की ओर इंगित करता है.
ऐसी परिस्थिति में अथवा फूल अवस्था आने पर खेत में अंग्रेज़ी के ‘T’ (टी अक्षर) अथवा ‘Y’ (वाय अक्षर) के आकार की चने की फसल से ऊँची 20 खूँटीयाँ प्रति एकड़ लगायें जिसपर पक्षी आ कर बैठें और इल्लीयों को चुनकर हानिकारक स्तर के नीचे ला दें. किंतु फल आने पर इन खूँटीयों को निकाल दें जिससे पक्षी फलों को नुकसान नहीं पहुँचायें. इसके अतिरिक्त मेड़ और खेत से चौड़ी पत्तीयों की खरपतवार विषेशकर खेत से लमेरा राई के पौधे निकाल कर नष्ट करें. चौड़ी पत्तीयों पर इल्लीयाँ अंडें देती हैं जिससे इल्लीयों का संक्रमण कई गुना बढ़ जाता है.
डॉ. चन्द्रजीत सिहं ने बताया कि नीम की पत्तीयों को उबाल कर और निचोड़कर काढ़ा बनाकर तथा प्रति टंकी दो चम्मच कपड़े अथवा बर्तन धोने का पाऊडर मिला कर हर पाँच दिन में फसल पर छिड़काव करें जिससे इल्लीयों के आक्रमण कमी आयेगी. रसायनिक उपायों पर निर्भरता कम होने से खेती की लागत में तो कमी आयेगी ही साथ ही साथ फसल तथा मृदा के स्वास्थ पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा. फेरोमॉन फन्दा और प्रकाश प्रपंच लगाने से भी खेत में आने वाले कीटों की जानकारी मिलेगी और मित्र कीट रासायनों के प्रकोप से बचेंगे .
इन सभी उपायों के बावजूद भी यदि कीट नष्ट नहीं होते तो 35 मिली ट्रायज़ोफॉस प्रति टंकी मिलाकर डालें . प्रति एकड़ 18-20 टंकी दवाई का छिड़काव करें.
प्रशिक्षणार्थियों की ओर से श्रीमति साधना मालवीय ने प्रशिक्षण को समयानुकूल तथा कृषकों के लिये सार्थक एवं उपयोगी बताया एवं कृषि विज्ञान केन्द्र को तक्नीकी जानकारी प्रदान करने के लिये धन्यवाद दिया। प्रशिक्षण में औषधीय वैज्ञानिक डॉ. निर्मला सिंह तथा वैज्ञानिक पौध प्रजनन डॉ. आर.पी जोशी सहयोग प्रशंसनीय रहा ।